Sunday, February 18, 2007
प्रेम दिवस पर.....
वैलेंटाइन दिवस- कुछ तथ्य कुछ आँकड़े
—पूर्णिमा वर्मन
विश्व भर में ढेरों प्रेमियों द्वारा 14 फरवरी का दिन प्रेमदिवस के रूप में मनाया जाता है। लाखों-करोड़ों प्रेमी/प्रेमिका अपने प्रेमियों/प्रेमिकाओं के नाम इस दिन पत्र, फूल और उपहार भेजते हैं।बाज़ार और फुटपाथ हृदय के आकार के लैटरपैड और लिफ़ाफ़ों से भर जाते हैं। जिधर नज़र दौड़ाएँ, दिल ही दिल नज़र आते हैं। दिल के आकार की मिठाइयाँ, दिल के आकार के केक, चॉकलेट, टॉफी और यहाँ तक सैंडविच को भी दिल का आकार दे दिया जाता है। साबुन के डिब्बे, इत्र, हर चीज़ बस दिल है।मुस्लिम देश होने के बावजूद दुबई के सोना बाज़ार में दिल का ज़बरदस्त बोलबाला रहता है- सोने के दिल, चांदी के दिल, हीरे और कीमती नगों के दिल, जड़ाऊ दिल, मीनाकारी वाले दिल, संदेश खुदे दिल, दिल के आकार की घड़ियाँ, पेंडेंट, टॉप्स और अंगूठियाँ। ऐसे भी सौदे होते हैं कि एक हज़ार दिरहम के गहने ख़रीदिए और हीरे का एक दिल मुफ्त ले जाइए। यह दिल इतना छोटा होता है कि इसे देखकर बरबस आपके ओंठों पर यह गीत आ जाए- दिल है छोटा सा...उपहार तो उपहार है, उसकी कीमत या आकार का कोई मूल्य नहीं। मूल्य तो उसके पीछे छिपी भावना का है। बस तो फिर इस भावना से अभिभूत उपहार का एक पैकेट बँधवाइए और अपने प्रेमी या प्रेमिका का नाम पता दे दीजिए। पैकेट को आपके प्रेम सहित वहाँ पहुँचा दिया जाएगा। ज़रूरी नहीं कि इस पैकेट पर आपका भी नाम पता हो। इस तरह आप अपनी प्रेमिका को चौंका सकते हैं मानों कह रहे हों - बूझो तो कौन? या रूठे प्रेमी को मना सकते हैं या कोई नया प्रेम संबंध स्थापित कर सकते हैं। किसी शायर ने कहा भी है -'कभी रोना कभी हँसना, कभी हैरान हो रहनामुहब्बत क्या भले चंगे को दीवाना बनाती है।'इस शेर को पढ़कर लगता है कि यह किसी ऐसे प्रेमी या प्रेमिका का चित्रण है, जिसके पास 14 फरवरी को एक गुमनाम प्रेम उपहार आ पहुँचा है और वह उसके भेजने वाले का पता नहीं लगा पा रहा है। लिखते समय शायर साहब के दिमाग़ में यह कल्पना भले ही न आई हो। गुमनाम प्रेम प्रदर्शन की यह परंपरा कब, क्यों और कैसे इस पर्व के साथ जुड़ गई इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। हाँ सबसे पुराना वैलेंटाइन कार्ड जो ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है, वह सन 1400 का है। सन 1800 से वैलेंटाइन डे का व्यवसायीकरण शुरू हुआ और आज उपहार व अभिनंदन पत्र बनानेवाली कंपनियाँ इसे बहुत बड़े प्रमोटिंग उत्सव के रुप में देखती हैं।प्रेम पत्रों और प्रेम-उपहारों ने अनोखे आँकड़े भी कायम किए हैं और भारत भी इसमें पीछे नहीं छूटा है। सबसे महँगा प्रेमदिवस उपहार बड़ौदा के गायकवाड़ ने 14 फरवरी 1891 में अपनी प्रेमिका को भेजा था जिसका मूल्य लगभग 47 हज़ार पौंड था। प्रेमिकाओं में अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय नामों में एक हैं ब्रिटेन की महारानी ऐलिजबेथ। उन्हें हर वर्ष हज़ारों अनाम प्रेमपत्र और अभिनंदन कार्ड इस अवसर पर मिलते हैं। कहते हैं कि पहला वैलेंटाइन संदेश ड्यूक ऑफ ओरलिन्स ने 1415 में अपनी पत्नी को भेजा था, जब वह टॉवर आफ़ लंडन में कैदी का जीवन बिता रहा था। यह संदेश कविता के रूप में था, जिसे बाद में ब्रिटिश लाइब्रेरी में संग्रहित किया गया। आज प्रेम दिवस के पत्रों की संख्या इतनी बड़ी है कि किसी भी लाइब्रेरी के लिए इन्हें संग्रह करना संभव नहीं। 1979 में केवल ब्रिटेन में 2 करोड़ सत्तर लाख प्रेम पत्रों और कार्डों से डाक विभाग को निपटना पड़ा था, जिनमें से साठ लाख केवल लंदन में भेजे गए थे। 1980 में यह संख्या बढ़ कर 7 करोड़ 72 लाख तक पहुँच गई जो इस पर्व की बढ़ती हुई लोकप्रियता की ओर संकेत करती है। आज केवल यू एस ए में दस करोड़ से ऊपर अभिनंदन पत्र इस अवसर पर भेजे जाते हैं। समाचार पत्रों के व्यक्तिगत कॉलमों में 14 फरवरी को प्रकाशित होने वाले अनाम प्रेमी प्रेमिकाओं के प्रेम संदेशों की संख्या इनसे अलग है। यूरोपीय देशों के समाचार पत्रों इस दिन कई-कई कॉलम केवल प्रेमसंदेशों से भरे रहते हैं। भारतीय समाचार पत्रों में भी ऐसे संदेश देखे जा सकते हैं।लोग समझते हैं कि सबसे ज़्यादा वैलेंटाइन डे संदेश प्रेमियों-प्रेमिकाओं को भेजे जाते हैं। लेकिन आँकड़े कहते हैं कि वैलेंटाइन डे संदेश पाने वालों में सबसे ऊपर हैं- अध्यापक अध्यापिकाएँ उसके बाद क्रमानुसार नीचे आते हैं बच्चे, माँ और पत्नी। इसके बाद स्थान आता है प्रेम करने वालों का। 3 प्रतिशत वैलेंटाइन संदेश पालतू जानवरों के हिस्से में आते हैं।यह त्योहार रोमन साम्राज्य और ईसाई धर्म से जुड़ा है। प्राचीन काल में इसे जूनों देवी की उपासना से संबद्ध किया जाता था। जूनों प्रेम और सौंदर्य की देवी थी और रोमन नागरिकों का विचार था कि वे युवतियों को प्रेम और विवाह में सफलता का आशीर्वाद देती हैं। इस अवसर पर देवी की पूजा होती, पार्टियाँ दी जातीं, उत्सव बनाया जाता और युवक युवतियाँ देवी से अपने प्रिय व्यक्ति को पति या पत्नी के रूप में माँगते। बाद में इसका स्वरूप बदला और इसे संत वेलेंटाइन से संबंधित कर दिया गया। क्लादियस द्वितीय के शासनकाल में संत वेलेंटाइन नामक लोकप्रिय बिशप था, जिसका देहांत 14 फरवरी 270 ईस्वी को हुआ तो इस पर्व को उनकी याद में 14 फरवरी को ही मनाया जाने लगा। गिरजाघरों में इस अवसर पर संत वेलेंटाइन की स्मृति में प्रार्थनाएँ होती रहीं और जनसामान्य ने इस दिन भेजे जाने वाले प्रेमपत्रों का नाम ही वेलेंटाइन रख दिया। आज यह पर्व जाति और धर्म की सीमा से परे हर धर्म के प्रेमियों को महत्वपूर्ण पर्व बन गया है।भारतीय साहित्य में बसंत को प्रेम की ऋतु कहा गया है। प्राचीन भारत में बसंत पंचमी के अवसर पर होने वाली कामदेव की पूजा भी वसंत और प्रेम के घनिष्ठ संबंधों को स्पष्ट करती है। यही एक प्रमुख कारण पश्चिम में संत वेलेंटाइन डे मनाने का भी है। प्यार के पर्व का प्यार के मौसम से संबंध होना स्वाभाविक भी है। यूरोप और एशिया के अधिकतर देशों में इस समय तक कड़क सर्दी का अंत हो जाता है और अच्छे मौसम का प्रारंभ हो जाता है। बर्फ़ पिघलने लगती है, ठंडी हवाएँ बहना बंद हो जाती हैं और गुनगुने मौसम की सवारी दिखाई देने लगती है, यानी या तो बसंत आ जाता है या आनेवाला होता है। चारों तरफ़ हरियाली फैली होती हो, रंग-बिरंगे फूलों से बगीचे भरे हों तो किसका मन प्रियजनों को याद करने का उन्हें उपहार देने का न करेगा? बहुत प्राचीनकाल में ऐसे ही मौसम में किसी एक प्रेमी ने वैलेंटाइन संदेश या उपहार भेजा होगा और फिर इसने परंपरा का रूप ले लिया होगा।फूलों का इस पर्व से गहरा नाता है। लाल गुलाब का फूल प्रेम का प्रतीक माना जाता है इसलिए वैलेंटाइन डे पर सबसे अधिक माँग इसी फूल की रहती है। ब्रिटिश लोग इस एक दिन में फूलों पर साढ़े तीन करोड़ पाउंड खर्च कर देते हैं। ख़रीदे जाने वाले फूलों में लाल गुलाबों की संख्या लगभग एक करोड़ होती है। अमेरिका में 60 प्रतिशत गुलाबों की पैदावार अकेले कैलिफ़ोर्निया प्रांत में होती हैं लेकिन उत्तरी अमेरिका में वैलेंटाइन डे पर फूलों की इतनी माँग होती है कि इस अवसर पर बिकने वाले अधिकतर गुलाब आयातित होते हैं। सबसे ज़्यादा गुलाब दक्षिण अमेरिका से आयात किए जाते हैं। वैलेंटाइन डे के तीन दिनों के भीतर यहाँ 11 करोड़ से अधिक फूलों का सौदा होता है जिनमें 5 करोड़ से अधिक संख्या लाल गुलाबों की होती है। इनमें से 73 प्रतिशत फूल पुरुषों द्वारा ख़रीदे जाते हैं और केवल 27 प्रतिशत महिलाएँ अपना धन इस दिन फूलों पर खर्च करती हैं। यहाँ यह जान लेना भी ज़रूरी है कि गुलाबी गुलाब कृतज्ञता का प्रतीक जिसे देकर आप कह सकते हैं- धन्यवाद। सफ़ेद गुलाब कहता है- आप अनमोल हैं, आपकी याद में..., पीला गुलाब कहता है- मेरे दोस्त बनोगे? और लाल गुलाब कहता है- मुझे प्यार है तुमसे।बात फूलों की हो तो पक्षियों को कैसे भूला जा सकता है? पक्षियों से संबंधित अलग अलग तरह के विचारों को वैलेंटाइन डे के साथ जोड़कर देखा जाता है.। कुछ जगहों पर विश्वास किया जाता है कि यदि वैलेंटाइन डे के दिन किसी लड़की के सिर पर से रॉबिन उड़ कर गुज़रे तो उसका विवाह एक नाविक से होता है, अगर वह पक्षी गौरैया हो तो उसका विवाह ग़रीब घर में होता है पर वह बहुत सुखी रहती है और जिस लड़की को इस दिन गोलफिंच के दर्शन हो जाएँ उसका विवाह किसी करोड़पति से होता है। मध्यकाल में इंग्लैंड और फ्रांस के लोगों का विश्वास था कि पक्षी फ़रवरी के मौसम में अपने जोड़े बनाते हैं इसलिए फ़रवरी का मध्य यानी 14 फरवरी रोमांस के लिए सबसे उपयुक्त दिन है।आज यह पर्व न केवल अपरिचित प्रेमियों को नज़दीक लाता है, बल्कि जो प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से परिचित हैं उनके लिए भी इस पर्व का कुछ कम महत्व नहीं। कुँवारे लोग विश्वास करते हैं कि प्रातःकाल सोकर उठते ही जिस युवक या युवती पर उनकी दृष्टि पड़ेगी, वही उनका जीवनसाथी होगा। कुछ लोग प्रिय के दर्शन की आशा में जब तक उसकी आवाज़ कान में न पड़े बिस्तर ही नहीं छोड़ते जबकि कुछ इस दिन सुबह उठते ही अपने-अपने प्रेमिकाओं का दरवाज़ा खटखटाने पहुँच जाते हैं। जो प्रेमी-प्रेमिकाएँ सुबह-सुबह नहीं मिल सकते, वे एक-दूसरे को फ़ोन करते हैं, ताकि जो आवाज़ इस दिन कान में सबसे पहले पड़े वह उनके प्रेमी या प्रेमिका की ही हो। दावतें और प्रीतिभोज हर पर्व की तरह इस पर्व की भी विशेष शोभा है।आज के भौतिक युग में जब हम मानवीय संवेदनाओं को कम महत्वपूर्ण आँकते हैं, तब इस प्रकार के संवेदनशील पर्वों का महत्व और भी बढ़ जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इसकी बाहरी चमक-दमक में न खो जाएँ, बल्कि इसमें निहित प्रेम की गरिमा और गहराई को पहचानें। इस पर्व को प्रेमियों या परिवार के पर्व के रूप में संकुचित न करके यदि इसके दायरे को समस्त मानवता के प्रति प्रेम के रूप में विकसित किया जाए बात ही कुछ और होगी। यदि ऐसा हो सके तो हम कम से कम दिन तो भौतिकता और मशीनी जीवन के घेरे से निकल कर मानवीय संबंधों और एहसासों के स्तर पर जी सकेंगे। जिसे हम व्यस्त जीवन में भले ही नकारते चले जाएँ पर अकेलेपन में कहीं न कहीं चाहते ज़रूर हैं। कवि वृंद ने भी कहा है - 'जैसो बंधन प्रेम कौ, तैसो बंध न और।'साभार : अभिव्यक्ति (teamabhi@abhivyakti-hindi.org)
kah ri dilli.....
Kah ri dilli…………
YAHA HAR OR CHEHRON KI CHAMAK JAB BHI HAI MILTI MUSKURAATI HAI,
YAHA PAAKAR ISHAARA ZINDGI LAMBI SADAK PAR DAUD JAATI HAI,
SUBAH KA SURYA THAKTA HAI TO KHAMBHON PAR CHAMAK UTHTI HAIN SHAAMEIN,
YAHAA HAR SHAAM PYAALON MEIN LACHAKTI HAI, NAHAATI HAI
DUKH THIKAANA DHUNDHTA HAI, SUKH BAHUT RAFTAAR MEIN HAI..
MAA MAGAR WO SUKH NAHI HAI JO TUMHAARE PYAAR MEIN HAI..............
YAHAA KOI DHUP KA TUKDAA NAHI KHELAA KIYA KARTAA HAI AANGAN MEIN,
SUBAH HOTI HAI YU HI, THAPKIYON KE BIN,KAMRE KI GHUTAN MEIN
NIT NAYE SAPNE BUNE JAATE YAHA HAIN KHULI AANKHON SE,
AUR SAPNE MAR BHI JAAYEIN TO NAHI UTHTI HAI KOI TEES MAN MEIN
GHAR KI MITTI, CHAAND, SONA, SAB YAHA BAAZAR MEIN HAI...
MAA MAGAR WO....................
O MERE PRIYATAM HUMAARE MAUN ANUBHAV HAIN LAJAATE,
HUM BHALAA IS SHOR-KI NAGRI MEIN KAISE AASTHA APNI BACHAATE,
PREM KE ANGIN CHITERE YAHA SADKON PAR KHADE KILLOL KARTE,
RAAT RADHA,DIWAS MEERA SANG, SAPNO KAA NAYAA BISTAR LAGAATE,
PREM KI GARIMAA YAHAA PAR DEH KE VISTAAR MEIN HAI...
HAA MAGAR WO............
KAH RI DILLI ? DE SAKEGI KABHI MUJHKO MERI MAA KA SNEH-AANCHAL,
DE SAKENGE KYAA TERE VAIBHAV SABHI,MILKAR MUJHE, DUKH-SUKH MEIN SAMBAL,
KYAA TU DEGI DHUYEIN-MEIN LIPTE HUYE CHEHRON KO RAUNAK??
THAKI-HAARI ZINDAGI KI RAAJDHAANI,DEKH LE APNA DHARAATAL,
POORVA KI GARIMA,TU KYUN AB PASCHIMI AVTAAR MEIN HAI??
MAA MAGAR WO........................
nikhil anand giri
memoriesalive@rediffmail.com
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