Sunday, November 21, 2010

तुम्हारा चेहरा मुझे ग्लोब-सा लगने लगा है...

तुम कैसे हो? दिल्ली में ठंड कैसी है? ....? ये सवाल तुम डेली रूटीन की तरह करती हो, मेरा मन होता है कह दूं- कोई अखबार पढ लो.. शहर का मौसम वहां छपता है और राशिफल भी.... मुझे तुम पर हंसी आती है, खुद पर भी.. पहले किस पर हंसू, मैं रोज़ ये पूछना चाहता हूं मगर तुम्हारी बातें सुनकर जीभ फिसल जाती है, इतनी चिकनाई क्यूं है तुम्हारी बातों में... रिश्तों पर परत जमने लगी है.. अब मुझे ये रिश्ता निगला नहीं जाता... मुझे उबकाई आ रही है... मेरा माथा सहला दो ना, शायद आराम हो जाये... कुछ भी हो, मैं इस रिश्ते को प्रेम नहीं कह सकता... अब नहीं लिखी जातीं बेतुकी मगर सच्ची कविताएं... तुम्हारा चेहरा मुझे ग्लोब-सा लगने लगा है, या किसी पेपरवेट-सा.... मेरे कागज़ों से शब्द उड़ न जाएं, चाहता हूं कि दबी रहें पेपरवेट से कविताएं.... उफ्फ! तुम्हारे बोझ से शब्दों की रीढ़ टेढी होने लगी है.... मैं शब्दों की कलाई छूकर देखता हूं, कागज़ के माथे को टटोलता हूं, तपिश बढ-सी गयी लगती है... तुम्हारी यादों की ठंडी पट्टी कई बार कागज़ को देनी पड़ी है.... अब जाके लगता है इक नज़्म आखिर, कच्ची-सी करवट बदलने लगी है... नींद में डूबी नज्म बहुत भोली लगती है.... जी करता है नींद से नज़्म कभी ना जागे, होश भरी नज़्मों के मतलब, अक्सर ग़लत गढे जाते हैं.... निखिल आनंद गिरि...

5 comments:

दिपाली "आब" said...

is nazm mein kaafi saari feelings ek saath rakhi gai hain,
Ek irriation, haqeeqat se bhaag jane ka bhaav hai..
Fir kavi kehta hai'' main is rishte ko prem nhi keh sakta''aur doosre hi pal kehta hai '' mera maatha sehla do na''...
Asmanjas mein fansa ek shaks jo prem se bhaag raha hai aur usi mein doob bhi raha hai, ye aisi stithi hai ki na to door jaya jaaye aur na paas aaya jaaye.. Bahut kash m kash hai is nazm mein.. Aapki behtareen rachnaaon mein se ek.. One of ma fav one.
Thanx fa sharing nikhil ji.. Loved this one.

दिपाली "आब" said...

aur agar mujhe kaha jaye ki is nazm ki best line chun.ni hai to main kahungi
'' tumhara chehra mujhe globe sa lagne laga hai'' uff kya metaphor hai..
Aur gusse ke tewar to masha allah kamaal hain

ZEAL said...

गजब की अभिव्यक्ति है। सच में ये रोजमर्रा के प्रश्न कभी-कभी पका देते हैं। मजा आया पढ़ कर।

शिक्षामित्र said...

पुरुष अपनी सोचता है,स्त्री पुरुष की!

doshiza said...

बहुत ही सुन्दर