Friday, February 23, 2007

प्रेमचंद को संबोधित किया गुलज़ार ने......

वर्ष 2007 प्रेमचंद का 127वीं जयंती वर्ष है जानेमाने लेखक, कवि और फ़िल्मकार गुलज़ार ने प्रेमचंद को कुछ इन शब्दों में संबोधित किया है. 'प्रेमचंद की सोहबत तो अच्छी लगती है लेकिन उनकी सोहबत में तकलीफ़ बहुत है... मुंशी जी आप ने कितने दर्द दिए हैं हम को भी और जिनको आप ने पीस पीस के मारा है कितने दर्द दिए हैं आप ने हम को मुंशी जी ‘होरी’ को पिसते रहना और एक सदी तक पोर पोर दिखलाते रहे हो किस गाय की पूंछ पकड़ के बैकुंठ पार कराना था सड़क किनारे पत्थर कूटते जान गंवा दी और सड़क न पार हुई, या तुम ने करवाई नही ‘धनिया’ बच्चे जनती, पालती अपने और पराए भी ख़ाली गोद रही आख़िर कहती रही डूबना ही क़िस्मत में है तो बोल गढ़ी क्या और गंगा क्या ‘हामिद की दादी’ बैठी चूल्हे पर हाथ जलाती रही कितनी देर लगाई तुमने एक चिमटा पकड़ाने में ‘घीसू’ ने भी कूज़ा कूज़ा उम्र की सारी बोतल पी ली तलछट चाट के अख़िर उसकी बुद्धि फूटी नंगे जी सकते हैं तो फिर बिना कफ़न जलने में क्या है ‘एक सेर इक पाव गंदुम’, दाना दाना सूद चुकाते सांस की गिनती छूट गई है तीन तीन पुश्तों को बंधुआ मज़दूरी में बांध के तुमने क़लम उठा ली ‘शंकर महतो’ की नस्लें अब तक वो सूद चुकाती हैं. ‘ठाकुर का कुआँ’, और ठाकुर के कुएँ से एक लोटा पानी एक लोटे पानी के लिए दिल के सोते सूख गए ‘झोंकू’ के जिस्म में एक बार फिर ‘रायदास’ को मारा तुम ने मुंशी जी आप विधाता तो न थे, लेखक थे अपने किरदारों की क़िस्मत तो लिख सकते थे?' .................... ................

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